न जी भर के देखा न कुछ बात की
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरजू थी मुलाक़ात की
 कई साल से कुछ खबर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
 उजालों की परियां नहाने लगी.न
नदी गुनगुनाई खयालात की
 मई चुप था तो चलती हवा रूक गई
जुबां सब समझते हैं जज्बात की
 सितारों को शायद कह्बर ही नहीं
मुसाफिर ने जाने कहाँ रात की  
बरसती हुई रात बरसात की
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