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Friday, September 21, 2007

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले ।


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन,

बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले ।


मुहब्बत में नही है फर्क जीने और मरने का,

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले ।


ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम,

कहीं ऐसा ना हो यां भी वही काफिर सनम निकले ।


क़हाँ मैखाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़,

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले।

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