देखना है वो मुझ पर मेहरबान कितना है
असलियत कहाँ तक है और गुमान कितना है
[असलियत = रियलिटी; गुमान = दौब्त]
क्या पनाह देती है और य ज़मीन मुझ को
और अभी मेरे सर पर आसमान कितना है
[पनाह = शेल्टर]
कुछ ख़बर नहीं आती किस रवीश पे है तूफ़ान
और कटा पता बाकी बादबान कितना है
[बादबान = सैल]
तोड़ फोड़ करती हैं रोज़ ख्वाहिशें दिल में
तंग इन मकानों से य मकान कितना है
क्या उठाये फिरता है बार-ऐ-आशिकी सर पर
और देखने में वो धान-पान कितना है
[बार = वेइघ्त्/बुर्दें]
हर्फ़-ऐ-आरजू सुन कर जांचने लगा यानी
इस में बात कितनी है और बयान कितना है
फिर उदास कर देगी सरसरी झलक उस की
भूल कर य दिल उस को शादामान कितना है
[शादामान = हैप्पी]