Monday, May 12, 2008

muhabbat me vafaadaarii se bachiye

मुहब्बत मी वफादारी से बचिए
जहा तक हो अदाकारी से बचिए

हर एक सूरत भली लगती है कुछ दिन
लहू के शोबदाकारी से बचिए

शराफत आदमियत दर्द-मंडी
बड़े शहरो मी बीमारी से बचिए

ज़रूरी क्या हर एक महफ़िल मी आना
तक़ल्लुफ़ की रवादारी से बचिए

बिना पैरो के सर चलते नही है
बुजुर्गो की समझदारी से बचिए

बेसन की सोंधी रोटी पर

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बानस की खुर्री खात के ऊपर
हर आहात पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ

चिडियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पडोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नातनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
पते पूराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

Tuesday, May 6, 2008

dekhanaa hai vo mujh par meharabaan kitanaa hai

देखना है वो मुझ पर मेहरबान कितना है
असलियत कहाँ तक है और गुमान कितना है

[असलियत = रियलिटी; गुमान = दौब्त]

क्या पनाह देती है और य ज़मीन मुझ को
और अभी मेरे सर पर आसमान कितना है

[पनाह = शेल्टर]

कुछ ख़बर नहीं आती किस रवीश पे है तूफ़ान
और कटा पता बाकी बादबान कितना है

[बादबान = सैल]

तोड़ फोड़ करती हैं रोज़ ख्वाहिशें दिल में
तंग इन मकानों से य मकान कितना है

क्या उठाये फिरता है बार-ऐ-आशिकी सर पर
और देखने में वो धान-पान कितना है

[बार = वेइघ्त्/बुर्दें]

हर्फ़-ऐ-आरजू सुन कर जांचने लगा यानी
इस में बात कितनी है और बयान कितना है

फिर उदास कर देगी सरसरी झलक उस की
भूल कर य दिल उस को शादामान कितना है

[शादामान = हैप्पी]

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा टू हैं जीने की अदा भूल गए हैं

खुश्बू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
एहसास का बदला मिलता है कली को
एहसास टू लेते हैं सिला भूल गए हैं

करते हैं मुहब्बत का और एहसास का सौदा
मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ खुदा भूल गए हैं

आब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
आब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
क्यूँ भटके हैं मंजिल का पता भूल गए हैं