Tuesday, May 6, 2008

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा टू हैं जीने की अदा भूल गए हैं

खुश्बू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
एहसास का बदला मिलता है कली को
एहसास टू लेते हैं सिला भूल गए हैं

करते हैं मुहब्बत का और एहसास का सौदा
मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ खुदा भूल गए हैं

आब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
आब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
क्यूँ भटके हैं मंजिल का पता भूल गए हैं

1 comment:

आलोक said...

विक्रम जी यदि आप अक्षरों का रंग पीला कर दें या पीछे का रंग नीले के बजाय कोई हल्का रंग कर दें तो आपका चिट्ठा और कलात्मक हो जाए।