Monday, January 28, 2008

sadamaa to hai mujhe bhii ki tujhase judaa huu.N mai.n

सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं

सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन य सोचता हूँ कि आब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफिलों में तुझे धूँद्ता हूँ मैं

मैं खुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐताराफ
अपने बदन की कब्र में कबसे गदा हूँ मैं

किस-किसका नाम लूँ ज़बान पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख्स नया देखता हूँ मैं

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं

ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रकीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं

shaam ke saa.Nvale chehare ko nikhaaraa jaaye

शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये


शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये
क्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये

रास आया नहीं तस्कीन का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये

मेहरबान तेरी नज़र, तेरी अदाएं कातिल
तुझको किस नाम से ई दोस्त पुकारा जाये

मुझको दर है तेरे वादे पे भरोसा करके
मुफ्त में य दिल-ए-खुशाफहम न मारा जाये

जिसके दम से तेरे दिनरात दराख्शान थे "क़तील"
कैसे आब उस के बिना वक़्त गुज़ारा जाये

zindagii men to sabhii pyaar kiyaa karate hain

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो य एहसास हुआ है मुझको
य मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है
इक ज़रा सा गम-ए-दौरान का भी हक है जिस पर
मैं ने वो सांस भी तेरे लिए रख छोडी है
तुझ पे हो जाऊँगा कुरबान तुझे चाहूँगा

अपने जज्बात में नाग्मात रचाने के लिए
मैं ने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैं ने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगहबान तुझे चाहूँगा

तेरी हर चाप से जलाते हैं ख्यालों में चिराग
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुश्बू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा

garmii-e-hasarat-e-naakaam se jal jaate hain

गरमी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं

गरमी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं

बच निकलते हैं अगर आतिः-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं

खुदानुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं

शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं

राबता बाहम पे हमें क्या न नहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाता है

apane hoThon par sajaanaa chaahataa huuN

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आंसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोटी बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
आब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रौशनी हो घर जलाना चाहता हूँ

आखरी हिचकी तेरे जानो.न पे आये
मौत भी मई.न शायराना चाहता हू.न

milakar judaa hue to na soyaa kare.nge ham

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करे.नज हम

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आंसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोटी पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी 'क़तील'
साहिल पे कश्तियों को दूबोया करेंगे हम

Friday, January 25, 2008

musaafir ke raste badalate rahe

मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे

मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उस की आंखों के जलाते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे

सूना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख बदलते रहे

लिपट के चरागों से वो सो गए
जो फूलों पे करवट बदलते रहे

sun lii jo Khudaa ne vo duaa tum to nahiin ho

सुन ली जो खुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो

सुन ली जो खुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो
दरवाजे पे दस्तक की सदा तुम तो नहीं हो

सिमटी हुई शरमाई हुई रात की रानी
सोई हुई कलियों की हया तुम तो नहीं हो

महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें
भीगे हुए मौसम की अदा तुम तो नहीं हो

इन अजनबी राहों में नहीं कोई भी मेरा
किस ने मुझे यूं अपना कहा तुम तो नहीं हो

isakate aab me.n kis kii sadaa hai

इसकते आब में किस की सदा है

इसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आंखों ने देखा
खुदा चारो तरफ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपालो
य सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पक गहू,न की खुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनहरा हो चला है

हकीक़त सुर्ख मछली जानती है
समंदर कैसा बूधा देवता है

हमारी शाख का नौखेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आंखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

vahii taaj hai vahii taKht hai vahii zahar hai vahii jaam hai

वही ताज है वही तख्त है वही ज़हर है वही जाम है


वही ताज है वही तख्त है वही ज़हर है वही जाम है
य वही खुदा की ज़मीन है य वही बुतों का निजाम है

बादे शौक़ से मेरा घर जला कोई आंच न तुझपे आयेगी
य जुबां किसी ने खरीद ली य कलम किसी का गुलाम है

मैं य मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियों ने बुझा दिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

vo chaaNdanii kaa badan Khushbuuon kaa saayaa hai

वो चांदनी का बदन खुश्बूओं का साया है


वो चांदनी का बदन खुश्बूओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमान के जीने से
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है

महक रही है ज़मीन चांदनी के फूलों से
खुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसे धुएँ से घुटा
वो इक चराग था मैं ने उसे बुझाया है

na jii bhar ke dekhaa na kuchh baat kii

न जी भर के देखा न कुछ बात की


न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरजू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ खबर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

उजालों की परियां नहाने लगी.न
नदी गुनगुनाई खयालात की

मई चुप था तो चलती हवा रूक गई
जुबां सब समझते हैं जज्बात की

सितारों को शायद कह्बर ही नहीं
मुसाफिर ने जाने कहाँ रात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुरा'आब का
बरसती हुई रात बरसात की

ye chaaNdanii bhii jin ko chhuute hue Daratii hai

य चांदनी भी जिन को छूटे हुए डरती है

य चांदनी भी जिन को छूटे हुए डरती है
दुनिया उन्हीं फूलों कोपैरों से मसलती है

शोहरत की बुला.नदी भी पल भर का तमाशा है
जिस दाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूं याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है

आ जाता है खुद खेंच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है

आंसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख लचकती है

खुश रंग परिंदों के लॉट आने के दिन आये
बिछडे हुए मिलते हैं जब बर्फ पिघलती है

aaNsuuon kii jahaaN paayamaalii rahii

आंसूओं की जहाँ पायामाली रही

आंसूओं की जहाँ पायामाली रही
ऎसी बस्ती चरागों से खाली रही

दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही

जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेखयाली रही

लैब तरसते रहे इक हँसी के लिए
मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही

चाँद तारे साभी हमसफ़र थे मगर
जिंदगी रात थी रात काली रही

मेरे सीने पे खुश्बू ने सर रख दिया
मेरी बांहों में पूलों की डाली रही

duusaro ko hamaarii sazaayen na de

दूसरो को हमारी सज़ाएँ न दे

दूसरो को हमारी सज़ाएँ न दे
चांदनी रात को बाद-दुआएं न दे

फूल से आशिकी का हुनर सीख ले
तितलियाँ खुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें
इस कदर खुबसूरत सज़ाएँ न दे

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफाओं को अपनी वफायें न दे

मैं बिखर जाऊंगा आंसूओं की तरह
इस कदर प्यार से बाद-दुआएं न दे

Monday, January 14, 2008

kuchh ajab zindagii ke manzar hai

कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं


कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं
दूर तक रेत के समंदर हैं

मेरी ही रोशनी के पैकर हैं
चंद शक्लें जो दिल के अन्दर हैं

दिल जो ठहरे टू कुछ सुराग मिले
क़र्ज़ किस किस नज़र के हम पर हैं

है बड़ी चीज़ नाज़ुकी दिल की
किस से कहिये की लोग पत्थर हैं

खुल गई आँख टू खुला हम पर
ख्वाब बेदारियों से बहतर हैं

खामुशी खुद है एक गहराई
चुप हैं जो लोग वे समंदर हैं

ज़ख्म पर क्या गुज़र गई 'शायर'
रेजा रेजा तमाम नश्तर हैं

ai mohabbat tere anjaam pe ronaa aayaa

ई मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया


ई मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यो आज तेरे नाम पे रोना आया

यू.न तो हर शाम उम्मीदोंन मीन गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तकदीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंजिल-ए-इश्क मीन हर गाम पे रोना आया

[गाम= STEP]

जब हुआ ज़िक्र ज़माने मीन मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

kaise kah duuN ki mulaaqaat nahiin hotii hai

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है


कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बाट नहीं होती है


आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बाट नहीं होती है


छुप के रोता हू.न तेरी याद में दुनिया भर से
कब मेरी आँख से बरसात नहीं होती है


हाल-ए-दिल पूछने वाले तेरी दुनिया में कभी
दिन टू होता है मगर रात नहीं होती है


जब भी मिलते हैं टू कहते हैं कैसे हो "शकील"
इस से आगे टू कोई बाट नहीं होती है

banaa banaa ke tamannaa miTaa_ii jaatii hai

बना बना के तमन्ना मिटाइ जाती है


बना बना के तमन्ना मिटाई जाती है
तरह तरह से वफ़ा आज़माई जाती है

जब उन को मेरी मुहब्बत का ऐतबार नही.न
तो झुका झुका के नज़र क्यो मिलाई जाती है

हमारे दिल का पता वो हमे.न नही.न देते
हमारी चीज़ हमी.न से छुपाई जाती है

'शकील' दूरी-ए-मंजिल से ना-उम्मीद न हो
मंजिल आब आ ही जाती है आब आ ही जाती है

Sunday, January 13, 2008

Waqt ka yeh parinda ruka hai kahan

वक़्त का यह परिंदा रुका है कहाँ


वक़्त का यह परिंदा रुका है कहाँ
मैं था पागल जो इसको बुलाता रह
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद आता रह

लौट त था जब(पाठशाला) से घुर
अपने हट से खाना खेलती थी माँ
रात मैं अपनी ममता के अंचल तले
थाप्कान दे के सुलाती थी माँ
सूच के दिल मैं एक तीस उठती रही
रात फार दर्द मुझ को जगाता रह
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद अत रह

सब कि आँखों मैं आंसू झुल्क आये थे
जब रवाना होवा था शेहेर के लिये
कुछ ने मांगी दुआएँ के मैं खुश राहों
कुछ ने मंदिर मैं जाके जलाये दीये
एक दिन मैं बनूँ गा बारह आदमी
यह तस्वर ओन्हें गुदगुदाता रहा
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद अत रह

माँ यह लिखती है हर बार खुट मैं मुझे
लौट आया मेरे बेटे तुझे है क़सम
तू गया जब से परदेस मैं बे चैन हों
नींद आती नही भोक लुगती है कम
कितना चाह न रूउन मुगेर क्या कुरों
खुट मेरी माँ का मुझ को रुलाता रह
चार पास कमाने जो आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद आता रह

tum itanaa jo muskuraa rahe ho

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो


तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिस को छुपा रहे हो

आंखों में नामी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
य अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेदे जा रहे हो

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो

koii ye kaise bataa ye ke vo tanhaa kyon hain

कोई य कैसे बता य के वो तनहा क्यों हैं


कोई य कैसे बता य के वो तनहा क्यों हैं
वो जो अपना था वोही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है टू फिर ऎसी य दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं टू आखिर यही होता क्यों हैं

एक ज़रा हाथ बा.धा, डे टू पका.डाले दामन
उसके सीने मी.न समा जाये हमारी ध.दकन
इतनी कुरबत हैं टू फिर फासला इतना क्यों हैं


दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं आब तक कोई
एक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं

तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
हैं जनम का जो य रिश्ता टू बदलता क्यों हैं

jhukii jhukii sii nazar beqaraar hai ki nahiin

झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है की नहीं


झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है की नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है की नहीं

तू अपने दिल की जवान धड़कनों को गिन के बता
मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है की नहीं

वो पल के जिस मी.न मुहब्बत जवान होती है
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है की नहीं

तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे य ऐतबार है की नहीं

sunaa karo merii jaaN in se un se afasaane

सूना करो मेरी जान इन से उन से अफसाने


सूना करो मेरी जान इन से उन से अफसाने
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ काफिले वालों
हैं मेरी प्यास के फूंके हुए य वीराने

मेरी जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग
सूना है बंद किये जा रहे हैं बुत-खाने

जहाँ से पिछले पहर कोई तश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड हैं यारों ने आज पैमाने

बहार आये तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सेहरा ने

सिवा है हुक्म कि "कैफी" को संग-सार करो
मसीहा बैठे हैं छुप के कहा.न खुदा जाने

bas ik jhijhak hai yahii haal-e-dil sunaane me.n

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने मी.न


बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने मी.न
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने मी.न

[झिझक=हेसिटेशन; ज़िक्र=मेंशन; फ़साना=टेल]

बरस पा.दी थी जो रुख से नकाब उठाने मी.न
वो चा.न्दनी है अभी तक मेरे गरीब-खाने मी.न

[रुख=फस; नकाब=वेल]

इसी मी.न इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने मी.न

य कह के टूट पा.दा शाख-ए-गुल से आखिरी फूल
आब और देर है कितनी बहार आने मी.न

baat nikalegii to phir duur talak jaayegii

baat nikalegii to phir duur talak jaayegii


बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी

लोग बेवजह उदासी का सबब पूछे.नज
य भी पूछे.गे कि तुम इतनी परेशा.न क्यू.न हो
उ.न्गालिया.न उठे.न्गी सूखे हुए बालो.न की तरफ
इक नज़र देखे.नज गुज़रे हुए सालो.न की तरफ
छु.दियो.न पर भी कई तंज़ किये जाये.नज
का.न्पते हाथो.न पे भी फिकरे कसे जाये.नज

लोग ज़ालिम है.न हर इक बात का ताना दे.नज
बातो.न बातो.न मी.न मेरा ज़िक्र भी ले आये.नज
उनकी बातो.न का ज़रा सा भी असर मत लेना
वरना चहरे के तासुर से समझ जाये.नज
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे मी.न को_ई बात न करना उनसे

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी

dekh lo Khvaab magar Khvaab kaa charchaa na karo

देख लो ख्वाब मगर ख्वाब का चर्चा न करो



देख लो ख्वाब मगर ख्वाब का चर्चा न करो
लोग जल जायेंगे सूरज की तमन्ना न करो

वक़्त का क्या है किसी पल भी बदल सकता है
हो सके तुम से तो तुम मुझ पे भरोसा न करो

किर्चिया.न टूटे हुए अक्स की चुभ जायेंगी
और कुछ रोज़ अभी आ_ईना देखा न करो


अजनबी लगाने लगे खुद तुम्हे.न अपना ही वजूद
अपने दिन रात को इतना भी अकेला न करो

ख्वाब बच्चो.न के खिलौनों.न की तरह होते है.न
ख्वाब देखा न करो ख्वाब दिखाया न करो

बे-खयाली मी.न कभी उ.न्गालिया.न जल जायेंगी
राख गुज़रे हुए लम्हों.न की कुरेदा न करो

मोम के रिश्ते है.न गरमी से पिघल जायेंगे
धूप के शहर मी.न "आज़र य तमाशा न करो