Friday, January 25, 2008

musaafir ke raste badalate rahe

मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे

मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे

मेरे रास्ते में उजाला रहा
दिए उस की आंखों के जलाते रहे

वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे

मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुखी
किराए के घर थे बदलते रहे

सूना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख बदलते रहे

लिपट के चरागों से वो सो गए
जो फूलों पे करवट बदलते रहे

No comments: