Sunday, January 13, 2008

koii ye kaise bataa ye ke vo tanhaa kyon hain

कोई य कैसे बता य के वो तनहा क्यों हैं


कोई य कैसे बता य के वो तनहा क्यों हैं
वो जो अपना था वोही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है टू फिर ऎसी य दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं टू आखिर यही होता क्यों हैं

एक ज़रा हाथ बा.धा, डे टू पका.डाले दामन
उसके सीने मी.न समा जाये हमारी ध.दकन
इतनी कुरबत हैं टू फिर फासला इतना क्यों हैं


दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं आब तक कोई
एक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं

तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
हैं जनम का जो य रिश्ता टू बदलता क्यों हैं

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