Monday, January 28, 2008

garmii-e-hasarat-e-naakaam se jal jaate hain

गरमी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं

गरमी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं

बच निकलते हैं अगर आतिः-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं

खुदानुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं

शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं

राबता बाहम पे हमें क्या न नहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाता है

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