वही ताज है वही तख्त है वही ज़हर है वही जाम है
वही ताज है वही तख्त है वही ज़हर है वही जाम है
य वही खुदा की ज़मीन है य वही बुतों का निजाम है
बादे शौक़ से मेरा घर जला कोई आंच न तुझपे आयेगी
य जुबां किसी ने खरीद ली य कलम किसी का गुलाम है
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
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