Friday, January 25, 2008

isakate aab me.n kis kii sadaa hai

इसकते आब में किस की सदा है

इसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है

सवेरे मेरी इन आंखों ने देखा
खुदा चारो तरफ बिखरा हुआ है

समेटो और सीने में छुपालो
य सन्नाटा बहुत फैला हुआ है

पक गहू,न की खुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनहरा हो चला है

हकीक़त सुर्ख मछली जानती है
समंदर कैसा बूधा देवता है

हमारी शाख का नौखेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है

मुझे उन नीली आंखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है

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