Sunday, January 13, 2008

tum itanaa jo muskuraa rahe ho

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो


तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिस को छुपा रहे हो

आंखों में नामी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो

बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
य अश्क जो पीते जा रहे हो

जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेदे जा रहे हो

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो

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