झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है की नहीं
झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है की नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है की नहीं
तू अपने दिल की जवान धड़कनों को गिन के बता
मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है की नहीं
वो पल के जिस मी.न मुहब्बत जवान होती है
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है की नहीं
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे य ऐतबार है की नहीं
1 comment:
यह शेइर दहे दिल से पेश-ए-खिदमत है जनाब कैफ़ी आज़मी साहिब को !
तुझे खुदा के बराबर हमेशा समझा है
झुका दें सजदे में सिर को दयार है के नहीं
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