कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं
कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं
दूर तक रेत के समंदर हैं
मेरी ही रोशनी के पैकर हैं
चंद शक्लें जो दिल के अन्दर हैं
दिल जो ठहरे टू कुछ सुराग मिले
क़र्ज़ किस किस नज़र के हम पर हैं
है बड़ी चीज़ नाज़ुकी दिल की
किस से कहिये की लोग पत्थर हैं
खुल गई आँख टू खुला हम पर
ख्वाब बेदारियों से बहतर हैं
खामुशी खुद है एक गहराई
चुप हैं जो लोग वे समंदर हैं
ज़ख्म पर क्या गुज़र गई 'शायर'
रेजा रेजा तमाम नश्तर हैं
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