Monday, January 14, 2008

kuchh ajab zindagii ke manzar hai

कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं


कुछ अजब जिंदगी के मंज़र हैं
दूर तक रेत के समंदर हैं

मेरी ही रोशनी के पैकर हैं
चंद शक्लें जो दिल के अन्दर हैं

दिल जो ठहरे टू कुछ सुराग मिले
क़र्ज़ किस किस नज़र के हम पर हैं

है बड़ी चीज़ नाज़ुकी दिल की
किस से कहिये की लोग पत्थर हैं

खुल गई आँख टू खुला हम पर
ख्वाब बेदारियों से बहतर हैं

खामुशी खुद है एक गहराई
चुप हैं जो लोग वे समंदर हैं

ज़ख्म पर क्या गुज़र गई 'शायर'
रेजा रेजा तमाम नश्तर हैं

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