Sunday, January 13, 2008

Waqt ka yeh parinda ruka hai kahan

वक़्त का यह परिंदा रुका है कहाँ


वक़्त का यह परिंदा रुका है कहाँ
मैं था पागल जो इसको बुलाता रह
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद आता रह

लौट त था जब(पाठशाला) से घुर
अपने हट से खाना खेलती थी माँ
रात मैं अपनी ममता के अंचल तले
थाप्कान दे के सुलाती थी माँ
सूच के दिल मैं एक तीस उठती रही
रात फार दर्द मुझ को जगाता रह
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद अत रह

सब कि आँखों मैं आंसू झुल्क आये थे
जब रवाना होवा था शेहेर के लिये
कुछ ने मांगी दुआएँ के मैं खुश राहों
कुछ ने मंदिर मैं जाके जलाये दीये
एक दिन मैं बनूँ गा बारह आदमी
यह तस्वर ओन्हें गुदगुदाता रहा
चार पास कमाने मैं आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद अत रह

माँ यह लिखती है हर बार खुट मैं मुझे
लौट आया मेरे बेटे तुझे है क़सम
तू गया जब से परदेस मैं बे चैन हों
नींद आती नही भोक लुगती है कम
कितना चाह न रूउन मुगेर क्या कुरों
खुट मेरी माँ का मुझ को रुलाता रह
चार पास कमाने जो आया शेहेर
गाऊँ मेरा मुझे याद आता रह

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