Monday, January 28, 2008

shaam ke saa.Nvale chehare ko nikhaaraa jaaye

शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये


शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये
क्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये

रास आया नहीं तस्कीन का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये

मेहरबान तेरी नज़र, तेरी अदाएं कातिल
तुझको किस नाम से ई दोस्त पुकारा जाये

मुझको दर है तेरे वादे पे भरोसा करके
मुफ्त में य दिल-ए-खुशाफहम न मारा जाये

जिसके दम से तेरे दिनरात दराख्शान थे "क़तील"
कैसे आब उस के बिना वक़्त गुज़ारा जाये

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