शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये
शाम के सांवले चहरे को निखारा जाये
क्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये
रास आया नहीं तस्कीन का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये
मेहरबान तेरी नज़र, तेरी अदाएं कातिल
तुझको किस नाम से ई दोस्त पुकारा जाये
मुझको दर है तेरे वादे पे भरोसा करके
मुफ्त में य दिल-ए-खुशाफहम न मारा जाये
कैसे आब उस के बिना वक़्त गुज़ारा जाये
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