Sunday, October 7, 2007

फिर से मौसम बहारों का आने को है

फिर से मौसम बहारों का आने को है,
फिर से रंगीन ज़माना बदल जायेगा,
अबकी बज़्म चरागों सजा लेंगे हम,
ये भी अरमान दिल का निकल जायेगा,

आप करदे जो मुझको निगाहें करम,
मेरी उल्फत का रह जायेगा कुछ भरम,
यूं फ़साना तो मेरा रहेगा यही,
सिर्फ़ उनवान उसका बदल जायेगा,

फीकी फीकी सी क्यूँ शाम-ऐ-मएखाना है,
लुत्फ़ साकी भी कम खाली पैमाना है,
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दी जिए,
रंग महफिल का ख़ुद ही बदल जायेगा,

मेरे मिटने का उनको ज़रा गम नहीं,
जुल्फ भी उनकी ऐ दोस्त वार हम नहीं,
अपने होने न होने से होता है क्या,
काम दुनिया का यु ही तो चल जायेगा,

आपने दिल जो ज़ाहिद का तोडा तो क्या,
आपने उसकी दुनिया को छोड़ा तो क्या,
आप इतने तो आख़िर परेशान न हों,
वो संभलते संभलते संभल जायेगा,

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