Saturday, July 21, 2007

बशीर बद्र :कोई मासूम क्यों मेरे लिए

जनाब "बशीर बद्र" ग़ज़ल कि दुनिया बड़ा क़द रखते हैं ,उनकी गजलों मे वो बात है जो गालिब कि गजलों मे हुआ करती थी । जनाब को आधुनिक गालिब के नाम से भी जाना जता है , बशीर साहब कि एक मशहूर ग़ज़ल पेशेखिद्मत हैं ....


हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये ।
चरागों कि तरह जले आंखें जब शाम हो जाये । ।

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर ।
मोहबत की हवेली जिस तरह नेलाम हो जाये । ।

समंदर के सफ़र मे इस तरह आवाज़ दो हमको ।
हवाये तेज हो और कश्तियों मे शाम हो जाये । ।

मैं खुद एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ ।
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाये । ।

मुझे मालूम हैं उनका ठिकाना फिर कहॉ होगा ।
परिंदा आसमान छूने मे जब नाकाम हो जाये । ।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ।
ना जाने किस गली मे जिंदगी कि शाम हो जाये । ।

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