जनाब बशीर बद्र साहब कि वो ग़ज़ल जो महफिलों जरूर पेश कि जाती है,
लोबान मे चिंगारी जैसे कोई रख जाये ।
यूँ याद तेरी सब भर सीने सुलगती है । ।
खुशरंग परिंदों के लॉट आने के दिन आये ।
दो बिछड़े हुए मिलते है जब बर्फ पिघलती है । ।
यूँ प्यार नही छिपता पलकों को झुकने से ।
आंखों के लिफफो मे तहरीर चमकती हैं । ।
ये शोहरत कि बुलंदी भी पल भर का तमाशा हैं ।
जिस दाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है । ।
No comments:
Post a Comment