जब हम छोटे बच्चे थे, माँ उपले थापा करती थी
हम उपलों पर शक्लें गूंथा करते थे
आँख लगाकर ? कान बनाकर
नाक लगाकर
पगड़ी वाला ? टोपी वाला
मेरा उपला ?
तेरा उपला
अपने अपने जाने पहचाने नामों से उपला थापा करते थे
हँसता खेलता सूरज रोज़ सबेरे आकर
गोबर के उपलों में खेला करता था
रात को आँगन में जब चूल्हा जलता था
हम सरे चूल्हे घेर के बैठे रहते थे
किस उपले की बारी आई
किसका उपला राख हुआ
वो पंडित था
एक मुन्ना था
एक दसरथ था
बरसों बाद मैं
शमशान में बैठा सोच रह हूँ
आज रात इस वक़्त के जलते चूल्हे में
एक दोस्त का उपला और गया.
1 comment:
Written by Gulzaar Sahab!!!
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