Tuesday, September 9, 2008

Kabhii to aasmaan se chaand utare jaam ho jaaye

कभी तो आसमान से चाँद उतरे जाम हो जाए

कभी तो आसमान से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक खूबसूरत शाम हो जाए

हमारा
दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चरागों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए

अजब हालत थे यूं दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समंदर
के सफर में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएं
तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मैं
ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ,
कोई
मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए

मुझे
मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा
आसमान छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले
अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए

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