Monday, November 5, 2007

शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ

शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ
यह दिल ही काफी है तेरी याद में जलने के लिए

यह तेरी भी आंखों का कुसूर है
में तनहा गुनाहगार टू नही

इन ही पत्थरों पे चल के, आया सको टू आओ
हमारे घर के रस्ते कोई कहकशां नही

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