वक़्त-ए-रुखसत कहीं तारे कहीं जुगनू आये
हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आये
(वक़्त-ए-रुखसत : टिम ऑफ़ देपर्तुरे; बाजू : हंड्स)
बस गयी है मेरे एहसास में य कैसी महक
को’ई खुश्बू मैं लगाऊँ तेरी खुश्बू आये
मैं ने दिन रात खुदा से य दु’आ मांगी थी
को’ई आहट ना हो दर पे मेरे और टू आये
उस की बातें के गुल-ओ-ला’अल पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख को जादू आये
(गुल-ओ-ला’अल : फ्लोवेर्स ऎंड तुलिप्स; शोख : चीर्फुल)
उन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
शोख खाया हु’आ जैसे को’ई आहू आये
(आहू : दीर)
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया
मुद्दतों बाद मेरी आंख में आंसू आये
बशीर बद्र
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