Tuesday, September 4, 2007

मुझे हादसों से सजा - सजा के बहुत हसीं बना दिया..

वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ।
अभी मैं ने देखा है चांद भी किसी शाख-ए-गुल पे झुका हुआ॥

जिसे ले गाई है अभी हवा वो वरक था दिल की किताब का।
कहिन्न आंसुओं से मिटा हुआ कहीं आंसुओं से लिखा हुआ॥

किए मिले राइट को काट कर कोई मौज फूल किला गए।
कोई पैर प्यास से मर रहा है नदी के पास खरा हुआ॥

मुझे हादसों से सजा सजा के बहुत हसीं बना दिया।
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहंदियों से रचा हुआ॥

वाही खत के जिस पे जगह जगह दो महकते होंठों के चांद थे।
किसी भूले-बिसरे से ताक पर तह-ए-गर्द होगा दबा हुआ॥

वहीई शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी॥
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख्त अनार का क्या हुआ॥

मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या ।
य चराग कोई चिराग है ना जला हुआ ना बुझा हुआ॥

बशीर बद्र

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