जनाब को यूँ ही नही कहते आज का ग़ालिब, इनकी ग़ज़लों मे अदा हैं , नजाकत हैं , .... एक नमूना पेसेखिद्मत हैं ,
महसूस करे..........
फूल सा कुछ कलाम और सही ।
एक ग़ज़ल उस कए नाम और सही॥
उसकी ज़ुल्फ़ें बहुत घनेरी हैं ।
ऐक शब् का कयाम और सही ॥
(qayaam : stay)
ज़िंदगी के उदास किससे हैं ।
ऐक लार्की का नाम ओर सही ॥
कर्सियों को सुनाइये गज़लें ।
क़त्ल की ऐक शाम और सही ॥
कप्कपाती है रात सीने में ।
ज़हर का ऐक जाम और सही ॥
बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment