Tuesday, September 4, 2007

Zindagi ke udaas kisse hain

जनाब को यूँ ही नही कहते आज का ग़ालिब, इनकी ग़ज़लों मे अदा हैं , नजाकत हैं , .... एक नमूना पेसेखिद्मत हैं ,
महसूस करे..........

फूल सा कुछ कलाम और सही ।
एक ग़ज़ल उस कए नाम और सही॥

उसकी ज़ुल्फ़ें बहुत घनेरी हैं ।
ऐक शब् का कयाम और सही ॥

(qayaam : stay)

ज़िंदगी के उदास किससे हैं ।
ऐक लार्की का नाम ओर सही ॥

कर्सियों को सुनाइये गज़लें ।
क़त्ल की ऐक शाम और सही ॥

कप्कपाती है रात सीने में ।
ज़हर का ऐक जाम और सही ॥


बशीर बद्र

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