लोबान मे चिंगारी जैसे कोई रख जाये,
यूँ याद तेरी शब् भर सीने मे सुलगती हैं,
खुस-रंग परिंदों के लौटे आने के दिन आये दो,
बिच्दे हुए मिलते हैं जब बर्फ पिघमती है,
यूँ प्यार नही चुप्ता पलकों को झुकने से,
आखों के लिहाफों से तहरीर चमकती हैं,
य सोह्रत कि उलंदी भी पल भर का तमसा हैं,
जिस दाल पे बैठे हो ऊट भी सकती हैं.
:बशीर बद्र
No comments:
Post a Comment