हम दुआ लिखते रहे वो दगा पड़ते रहे
आँख से आँख मिलाता है कोईदिल को खींचे लिए जाता है कोई
वा-ए-हैरत के भारी महफ़िल मेंमुझ को तनहा नज़र आता है कोई
चाहिए खुद पे यकीन-ए-कामिलहौसला किस का बढाता है कोई
सब करिश्मात-ए-तसव्वुर है "शकील"वरना आता है न जाता है कोई
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