Friday, February 8, 2008

apanii aag ko zindaa rakhanaa kitanaa mushkil hai

अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है

अपनी आग को ज़िंदा रखना कितना मुश्किल है
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है

कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की
खुद को पास-ए-आईना रखना कितना मुश्किल है

तुमने मंदिर देखे होंगे य मेरा आँगन है
एक दिया भी जलता रखना कितना मुश्किल है

चुल्लू में हो दर्द का दरिया ध्यान में उसके होंठ
यूं भी खुद को प्यासा रखना कितना मुश्किल है

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