Friday, February 8, 2008

gulaab aur kapaas

गुलाब और कपास

खेतों में काम करती हुई लड़कियां
जेठ की चम्पई धूप ने
जिन का सोना बदन
सुरमई कर दिया
जिन को रातों में ओस और पाले का बिस्तर मिले
दिन को सूरज सरों पर जले

य हरे लॉन में
संग-ए-मर्मर के बेंचों पे बैठी हुई
उन हँसी मूरतों से कहीं खूबसूरत
कहीं मुखतलिफ
जिन के जूडे में जूही की कलियाँ सजीं
जो गुलाब और बेले की खुश्बू लिए
और रंगों की हिद्दत से पागल फिरें

खेत में धूप चुनती हुई लड़कियां भी
नई उम्र की सब्ज़ दहलीज़ पर हैं मगर
आईना तक नहीं देखतीं
य गुलाब और देजी की हिद्दत से नाआश्ना
खुशबुओं के जान लंस से बेखबर
फूल चुनती हैं लेकिन पहनती नहीं
इन के मलबूस में
तेज़ सरसों के फूलों की बास
उन की आंखों में रोशन कपास

No comments: