अगर न जोहरा जबीनो के दरमियाँ गुज़रे
अगर न जोहरा जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर य कैसे कटे जिंदगी कहाँ गुज़रे
जो तेरे आरिज़-ओ-गेसू के दरमियाँ गुज़रे
कभी कभी तो वो लम्हें बला-ए-जान गुज़रे
मुझे य वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़
कहीं ना खातिर-ए-मासूम पर गिरां गुज़रे
हर इक मुकाम-ए-मोहब्बत बहुत ही दिल-काश था
मगर हम अहल-ए-मोहब्बत कशान-कशान गुज़रे
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