Friday, February 8, 2008

agar na zoharaa jabiinon ke daramiyaaN guzare

अगर न जोहरा जबीनो के दरमियाँ गुज़रे


अगर न जोहरा जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर य कैसे कटे जिंदगी कहाँ गुज़रे

जो तेरे आरिज़-ओ-गेसू के दरमियाँ गुज़रे
कभी कभी तो वो लम्हें बला-ए-जान गुज़रे

मुझे य वहम रहा मुद्दतों के जुर्रत-ए-शौक़
कहीं ना खातिर-ए-मासूम पर गिरां गुज़रे

हर इक मुकाम-ए-मोहब्बत बहुत ही दिल-काश था
मगर हम अहल-ए-मोहब्बत कशान-कशान गुज़रे

No comments: