गुरूब-ए-शाम ही से खुद को यूं महसूस करता हूँ
कि जैसे इक दिया हूँ और हवा की ज़द पे रखा हूँ
चमकती धूप तुम अपने ही दामन में न भर लेना
मैं सारी रात पदों की तरह बारिश में भीगा हूँ
कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाये
तुम्हारे साथ पहली बार बाज़ारों में निकला हूँ
य किस आवाज़ का बोसा मेरे होंठों पे कांपा है
मैं पिछली शब सदाओं की हलावत भूल बैठा हूँ
बिछड़ के तुम से मैं ने भी कोई साथी नहीं धूँधा
हुजूम-ए-रहगुज़र में दूर तक देखो अकेला हूँ
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