Wednesday, February 6, 2008

Guruub-e-shaam hii se Khud ko yuuN mahasuus karataa huuN

गुरूब-ए-शाम ही से खुद को यूं महसूस करता हूँ
कि जैसे इक दिया हूँ और हवा की ज़द पे रखा हूँ

चमकती धूप तुम अपने ही दामन में न भर लेना
मैं सारी रात पदों की तरह बारिश में भीगा हूँ

कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाये
तुम्हारे साथ पहली बार बाज़ारों में निकला हूँ

य किस आवाज़ का बोसा मेरे होंठों पे कांपा है
मैं पिछली शब सदाओं की हलावत भूल बैठा हूँ

बिछड़ के तुम से मैं ने भी कोई साथी नहीं धूँधा
हुजूम-ए-रहगुज़र में दूर तक देखो अकेला हूँ

No comments: