Friday, February 8, 2008

koii samajhegaa kyaa raaz-e-gulashan

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन

याक-बा-याक सामने आना जाना
रूक न जाये कहीं दिल की धड़कन

गुल तो गुल खार तक चुन लिए हैं
फिर भी खाली है गुलचीं का दामन

कितनी आराइश-ए-आशियाना
टूट जाये न शाख-ए-नशेमन

अज़मत-ए-आशियाना बड़ा दी
बर्क को दोस्त समझूँ के दुश्मन

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