Friday, February 8, 2008

din guzar gayaa aitabaar men

दिन गुज़र गया ऐतबार में

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गई इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

उन की इक नज़र काम कर गई
होश आब कहाँ होशियार में

मेरे कासे में कायेनात है
मैं हूँ आप के इख्तियार में

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-ए-खार में

तुम से क्या कहें कितने गम सहे
हम ने बे-वफ़ा तेरे प्यार में

फिक्र-ए-आशियाँ हर खिजाम की
आशियाँ जला हर बहार में

किस तरह य गम भूल जाये हम
वो जुदा हुआ इस बहार में

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