Wednesday, February 6, 2008

phir se mausam bahaaron kaa aane ko hai

फिर से मौसम बहारों का आने को है
फिर से रंगीन ज़माना बदल जाएगा
आब की बज्म-ए-चरागाँ सजा लेंगे हम
य भी अरमां दिल का निकल जाएगा

आप कर दें जो मुझ पे निगाह-ए-करम
मेरी उल्फत का रह जाएगा कुछ भरम
यूं फ़साना तो मेरा रहेगा यहीं
सिर्फ उनवान उस का बदल जाएगा

फीकी फीकी सी क्यूँ शाम-ए-मैखाना है
लुत्फ़-ए-साकी भी कम खाली पैमाना है
अपनी नज़रों से ही कुछ पिला दीजिये
रंग महफ़िल का खुद ही बदल जाएगा

मेरे मिटने का उन को ज़रा गम नहीं
जुल्फ भी उन की ई दोस्त बरहम नहीं
अपने होने ना होने से होता है क्या
काम दुनिया का यूं ही तो चल जाएगा

आप ने दिल जो 'ज़हिद' का तोडा तो क्या
आप ने उस की दुनिया को छोडा तो क्या
आप इतने तो आख़िर परेशान न हों
वो संभालते संभालते संभल जाएगा

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