दो जवान दिलों का गम, दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है, हिचकियाँ समझती हैं
तुम तो खुद ही कातिल हो, तुम य बात क्या जानों
क्यों हुआ मैं दीवाना, बेदीयाँ समझती हैं
बाम से उतरती है जब हसीं दोशिज़ा
जिस्म की नजाकत को, सीदीयाँ समझती हैं
[बाम=ladder; दोशिज़ा=ब्रिदे]
यूं तो सैर-ए-गुलशन को, कितने लोग आते हैं
फूल कौन तोदेगा डालियाँ समझती हैं
उस को मेरी आंखों की पुतलियाँ समझती हैं
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