Wednesday, February 6, 2008

do javaaN dilon kaa Gam, duriyaaN samajhatii hain

दो जवान दिलों का गम, दूरियाँ समझती हैं
कौन याद करता है, हिचकियाँ समझती हैं

तुम तो खुद ही कातिल हो, तुम य बात क्या जानों
क्यों हुआ मैं दीवाना, बेदीयाँ समझती हैं

बाम से उतरती है जब हसीं दोशिज़ा
जिस्म की नजाकत को, सीदीयाँ समझती हैं

[बाम=ladder; दोशिज़ा=ब्रिदे]

यूं तो सैर-ए-गुलशन को, कितने लोग आते हैं
फूल कौन तोदेगा डालियाँ समझती हैं

जिसने कर लिया दिल में पहली बार घर 'डेनिश'
उस को मेरी आंखों की पुतलियाँ समझती हैं

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